घर छोड़ के निकला था जो फिर घर नहीं देखा

घर छोड़ के निकला था जो फिर घर नहीं देखा ज़िद थी ये परिन्दे की कि अम्बर नहीं देखा   जिस ठौर बहे चाहे वो जिस घाट पे ठहरे जब तक किसी दरिया ने समुन्दर नहीं देखा   पारस भी तुझी में है तो पत्थर भी तू ही है तूने कभी पारस को परख कर … Continue reading घर छोड़ के निकला था जो फिर घर नहीं देखा